अपने शहर में पुलिस लेन के आसपास अब चोरी होना आम बात है। शुरू शुरू में अखबार वाले इस खबर को छाप दिया करते थे। पर अब अखबार वाले ऐसी बातों की ओर कोई ध्यान नहीं देते। हम भी नहीं देते। पुलिस वाले तो भला क्यों देंगे?
मेरे एक मित्र कैंटोन्मेंट एरिया में रहते हैं। चार दिन पहले तक अघाए नहीं फिरते थे कि शहर में कोई सेफ हो या न, पर हम सेफ हैं। मुझे भी उनके वहां सेफ होने पर बड़ा दुःख होता था। पर मजे की बात उस दिन दिन दहाड़े उनके घर में चोरी हो गई। चोर चारपाई तक उठा कर ले गए। मजा आ गया। सच पूछो कुछ देर के लिए उस वक्त मैं फूला नहीं समाया। हंसते हंसते अचानक जब सामने की दीवार पर नजर गई तो सामने फ्रेम में बंद सदा पिता की तरह उदास रहने वाले बापू भी हंस रहे थे । उन्हें हंसते देख पल भर के लिए मेरी घिग्गी बंध गई। यार! बापू ने भी अब औरों का नुकसान होने पर जश्न मनाना शुरू कर दिया? जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने पेट पकड़े हंसते हुए उनसे पूछा,‘ बापू जी! ये क्या?मेरे मित्र के घर चोरी होने पर मेरा खुशी होना तो जायज है पर आपका यों खुशी होना पच नहीं रहा।'‘जो तुम सोच रहे हो मेरी खुशी का कारण वो नहीं। तुम्हारे मित्र के घर दिन दहाड़े चोरी होने का दुःख मुझे उतना ही है जितना तुम्हारे मित्र की घरवाली को है। जाकी रही भावना जैसी, मित्र के पीड़ा देखी तिन तैसी।' कह वे मुस्कुराते रहे।
‘तो आपके हंसने का कारण जान सकता हूं?' मैंने गंभीर होने का नाटक करते पूछा। ।
‘अमेरिका से मेरे चप्पल,लोटा, थाली, घड़ी, चश्मा मेरे देश आ गए।'
‘ न भी आते तो भी क्या होता! इसमें इतना इतराने की बात है क्या?आपके चप्पलों के बिना भी संसद में चप्पल तो चल ही रहे हैं। आपके चश्मे के बिना भी तो देश के कर्णधार अपने को देख ही रहे हैं। आपकी घड़ी के बिना भी तो देश में चुनाव हो ही रहे हैं। आपकी थाली के बिना भी तो खाने वाले दिल खोलकर खा रहे हैं। आपके लोटे के बिना भी तो देश अपने अपने कुएं पर मिनरल वाटर पी ही रहा है। अब अगर चश्मा, थाली, लोटा, चप्पल, घड़ी लौट कर आ ही गए तो कौन सा देश में आपका सोचा हो जाएगा बापू! इन चीजों के आने से देश में कौन सी क्रांति आ जाएगी? यह आपके दिमाग की कोरी भ्रांति है। दिल बहलाने के लिए बापू ख्याल अच्छा है। बहला लो दिल बापू! दिल बहलाने के अभी यहां दाम नहीं लगते।' कह मैंने एक बार फिर अपने पिता को पछाड़ने की तरह बापू को पछाड़ अपना सीना गर्व से ऊंचा किया। इस बापू की भी एक मुश्किल है ,वह यह कि सौ बार मुझसे पछाड़ खाने के बाद भी मेरे यहां टिके हुए हैं। ढीठ कहीं के।
‘मेरे लिए तो बस यह खुशी की ही बात है। और खुशी की बात यह है कि बरसों हो गए थे देश को स्वदेशी चप्पलों पर चले बिना। अब एडीडास के जूते पहनने से सारा देश तो रहा। बड़े दिन हो गए थे अपनी थाली में सत्तू खाए बिना। कागज की प्लेट में खाना तो अपनी संस्कृति नहीं । थाली के बिना देश ने कागज की प्लेटों में पिज्जा खा खा कर पेट बिगाड़ लिया, पर्यावरण बिगाड़ लिया। बड़े दिन हो गए थे देश को विदेशी घड़ी से अपने यहां सूरज उगते देखते हुए। मुए सही वक्त का पता ही नहीं लग रहा था। अब अपनी घड़ी में सही वक्त तो देखने को मिलेगा। अब मेरी घड़ी आ गई है, सही समय पर सही कदम तो उठाए जा सकेंगे। अब, देश में सही समय पर सही मर्ज का इलाज तो हो सकेगा। नहीं तो पता ही नहीं चल रहा था कि देश में हो क्या रहा है। और तो और, अब तो ऋतुएं भी समय पर आना भूल रही हैं। मेरा चश्मा आ गया है, अब यहां की समस्याओं को विदेशी आंखों से देखना तो रूकेगा। अब सरकार को सब ठीक दिखेगा। अब सरकार को जो भूखे हैं, भूखे ही दिखेंगे। जो नंगे हैं, वे नंगे ही दिखेंगे। अब देश मेरी चप्पलों को पहन कर चलेगा तो देख लेना राम राज आते देर न लगेगी। अब देश मेरी थाली में खाएगा तो देख लेना यहां कोई भी भूखा नहीं सोएगा। अब देश मेरे चश्मे से देखेगा तो देख लेना सरकारों को जो वास्तव में है, वही दिखेगा। जब देश मेरे लोटे से पानी पिएगा तो सब जन एक हो जाएंगे, जन जन की हर तरह की प्यास मिट जाएगी।' इस उम्र में भी एक सांस में सब कह जाने वाले बापू का उत्साह देखने लायक था।
‘बस! कह लिए कि और कहना बाकी है?' मैंने उन्हें पूछा तो वे कुछ कहने के बदले बस मुस्कुराते रहे। कुछ देर बाद मैंने ही उनसे कहा,‘ अब तुम अपनाने की नहीं सजाने की चीज हो बापू। हम अब आपको अपनाने की नहीं, सजाने की खाते हैं। सच तो यह है कि आपको अपनाने का किसीके पास वक्त नहीं,दीवार पर, चौक पर सजाने का वक्त संसद से सड़क तक सबके पास है। इसलिए ज्यादा मत उछलो, ढंके हुए हो तो ढंके रहो।' मैंने कहा तो बापू का हंसता चेहरा फिर उदास हो गया। असल में क्या है न! पिता चाहे घर का हो या राष्ट्र का, वह चाहे फ्रेम से बाहर हो या फ्रेम के भीतर वह चिंतन में ही अच्छा लगता है।
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