Friday, October 22, 2010

सुख भरे दिन बीते रे भैया...

जो ताऊ चुनाव के दिनों में अपने तो अपने, पूरे परिवार के पेटों को कब्‍जी कराए बैठा था, सबका पेट था कि बस खाए जा रहा था, बस खाए जा रहा था। जो भी आते ,जो भी देते खा जाते, ज्‍यों बरसों के भूखे हों। पता नहीं ये वोटर चुनाव के दिनों में इतने भुक्‍खड़ क्‍यों हो जाते हैं? तब मैंने ताऊ के ये हाल देख उसे समझाया भी था,‘ ताऊ! कम खा, कम! क्‍यों चार दिनों में अपनी पांच साल की आदत खराब कर रहा है।' पर ताऊ था कि मेरी एक भी सुनने को तैयार नहीं था उस वक्‍त। ताऊ ही क्‍या, कोई भी समझदार वोटर ताऊ की तरह ही डटा हुआ था।
चुनाव खत्‍म हुए! हारने वाले हार गए, तो जीतने वाले जीत गए। हारने वालों ने आत्‍म मंथन शुरू किया तो जीतने वालों ने जन मंथन। जो कल तक हाथ जोड़े खडे़ थे वे अब मुटि्‌ठयां भिंचे खड़े हैं। वोटर सामने आए तो सही। साले ने इतने दिन ऐसी की तैसी घुमा कर रखी। सोना तक हराम कर दिया था इस वोटर जात ने। रात को सोए सोए भी पसीने छूटते रहते थे। बुरे सपने आते रहते थे। अब तो भैया जीत गए हैं ,पांच साल लंबी तान कर सोएंगे। मरने वाला मरता रहे , जीने वाला जीता रहे अपनी बला से। यार हमने कोई पांच साल तक का जनता का ठेका तो नहीं ले रखा है। बहुत खिलाया पिलाया इतने दिन जनता को, ये क्‍या कम है? अब तो अपने टांगें पसार कर खाने के दिन हैं भैये! हमने चुनाव जनसेवा के लिए थोड़े ही जीता है। अपने भी बाल बच्‍चे हैं यार! अपनी भी भूखी नंगी रिश्‍तेदारी है! रिश्‍तेदारी के कर्ज अब नहीं उतारेंगे तो कब उतारेंगे भैये! साली जिंदगी का क्‍या भरोसा, सरकार गिरने का क्‍या भरोसा। आजकल तो सरकारें ऐसे गिर जाती हैं कि ऐसे तो नया नया चलना सीखने वाला बच्‍चा भी नहीं गिरता। अपनी भी आपकी तरह प्रेमिकाएं हैं जिनका अपने सिवाय सच्‍ची को कोई नहीं। होगा तो साले को साला बना कर नहीं रख दें तो खद्‌दर पहनना छोड़ दें॥ सात पुश्‍तों के लिए अब नहीं जोड़कर रखेंगे तो कब रखेंगे? अब है किसी माई के लाल में इतनी हिम्‍मत कि जो हमें खाने से रोके?
चुनाव के बाद मैं ताऊ घर गया तो बेचारा ताऊ सिर में हाथ दिए बैठा था। सोचा बीमार चल रहा होगा। बहुत खाया इतने दिनों तक। बहुत पिया इतने दिनों तक। जिसको पांच साल तक खाने को कुछ न मिले और एकाएक इतना मिले कि ... तो बीमार तो होगा ही।
और ताऊ क्‍या हाल हैं? चुनाव में हराम के खाए पिए की खुमारी उतरी कि नहीं?' मैंने ताऊ को पूछा तो ताऊ कुछ कहने के बदले चुप रहा वैसे ही सिर में हाथ दिए। पहले तो सोचा की हारने वाले का गम खाए जा रहा होगा इसे। पर ताऊ ने बताया कि उसका उम्‍मीदवार तो आज तक जीता ही है। उम्र हो गई ताऊ को खाते खाते। खा खा कर वोट पाते पाते। वैसे चुनाव सम्‍पन्‍न हो जाने के बाद जनता की अक्‍सर ताऊ वाली ही स्‍थिति होती है।
बड़ी देर तक ताऊ ने न पानी को पूछा न बैठने को तो ताऊ पर गुस्‍सा भी आया। हद हो गई यार ताऊ चार दिन तक नेताओं ने फूक क्‍या भरी, टुच्‍चे से नर को नारायण क्‍या कहा कि तू तो उम्र भर के शिष्‍टाचार को भी भूल गया। मुझे प्‍यास लगी थी सो ताऊ के नलके की ओर मुड़ा। चुनाव के दिनों में जब यहां आया था तो ताऊ के पाइप में जहां पहले पानी रोकने को भुट्‌टे की गुल्‍ली लगी होती थी वहां कोई उम्‍मीदवार विदेशी नलका फसा गया था। अभी फिर वहां पाइप में मक्‍की के भुट्‌टे की वही -

गुल्‍ली लगी देखी तो गश खा गया।
ये क्‍या ताऊ? वो नलका कहां गया?'

ताऊ ने पेट पकड़ मरी आवाज मे कहा,‘ बादल वाले हारने पर ले गए मुए निकाल कर।'
क्‍यों?'
कहा, वोट लेने तक दिया था।'
मैंने ताऊ के ओबरे की छत की ओर नजर डाली तो देखा कि उस पर चुनाव कि दिनों में जो तरपाल लगा था, वह भी गायब था।
ताऊ, वह तरपाल कहां गया? तूफान तो आया नहीं कि उड़ कर कहीं चला गया हो।'
वो भी ले गए साइकिल वाले। कहा, जीत तो हुई नहीं, अब अगले चुनाव में मिलेगा।'
और वो लाइट जो तुम्‍हारे नीम के पेड़ के सिर पर लगी थी?'
लालटेन वाले उतार कर ले गए। बोले, खुदा ने जिंदा रखा तो फिर चुनाव के आते ही तुरंत लगाएंगे, ले जा रहे हैं तब तक यहां लगी लगी फ्‌यूज न हो, इसलिए। दूसरे पार्टी के मुख्‍यालय में खुद भी अंधेरा है।'
'और जो सामने सड़क पर सड़क पक्‍की करने को रोलर, रोड़ी ,तारकोल रखी थी?'
वो भी हाथ वाले ले गए, बोले, पार्टी को संसद में जमाने के लिए रास्‍ता पक्‍का करने को ले जा रहे हैं। सब पक्‍का होते ही ले आएंगे।'
और जो तुम्‍हारे गांव में स्‍कूल का पत्‍थर रखा था?' मुझे सामने वो पत्‍थर न दिखा तो पूछा।
हाथी वाले उठा कर ले गए। बोले, जहां से पार्टी को लीड मिली है अब वहां लगाएंगे। अगले चुनाव तक हमें लीड का जुगाड़ करो तो देखेंगे।'
अचानक सामने नीम की फुनगी पर कौआ कांव कांव करता दिखा तो ताऊ ने पूछा‘,रे छोरे! काग भाषा जानता है क्‍या?'
हां ताऊ!'
तो ये कौआ बता क्‍या बोल रहा है?'
कह रहा है कि अगले चुनाव तक वोटर को भगवान हिम्‍मत दे।'
मैंने ताऊ का मन रखने के लिए कौवे की भाषा का विश्‍ोषज्ञ होने का दावा दे मारा जबकि सच तो यह है कि मैं आदमी की भाषा भी नहीं जानता।

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